Rahul Sankrityayan

राहुल सांकृत्यायन कौन थे?

राहुल सांकृत्यायन का नाम आते ही एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभरती है, जो घुमक्कड़ी, विद्वता और सामाजिक सुधार के प्रतीक थे। उन्हें भारतीय यात्रावृत्त साहित्य का जनक भी कहा जाता है। राहुल जी सिर्फ एक लेखक या घुमक्कड़ ही नहीं थे, बल्कि वे एक महान विचारक, इतिहासकार, बौद्ध धर्म के ज्ञाता, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी भी थे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

राहुल सांकृत्यायन का असली नाम केदारनाथ पांडेय था और उनका जन्म 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में हुआ था। वे एक परंपरागत ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, लेकिन उनकी सोच बचपन से ही सीमाओं को तोड़ने वाली थी। शिक्षा के प्रति उनका झुकाव शुरू से ही था, लेकिन औपचारिक शिक्षा पूरी न कर पाने के बावजूद उन्होंने अनेक भाषाएँ और विषयों का गहरा ज्ञान प्राप्त किया।

यात्राओं का जुनून

राहुल सांकृत्यायन का जीवन यात्राओं से भरा हुआ था। वे सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि तिब्बत, नेपाल, श्रीलंका, मंगोलिया, रूस और कई अन्य देशों की यात्रा कर चुके थे। उन्होंने पैदल चलते हुए, ऊँटों पर, घोड़ों पर, यहाँ तक कि नावों से भी सफर किया।

उन्होंने अपनी यात्राओं के दौरान विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और धर्मों को नजदीक से समझा और अनेक दुर्लभ ग्रंथों को खोजकर उन्हें दुनिया के सामने रखा। खासतौर पर उनकी तिब्बत यात्राएँ ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, क्योंकि उन्होंने वहाँ से बौद्ध धर्म से जुड़े कई दुर्लभ ग्रंथ भारत लाए।

साहित्यिक योगदान

राहुल सांकृत्यायन ने करीब 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें इतिहास, संस्कृति, दर्शन, धर्म, समाजशास्त्र, विज्ञान और घुमक्कड़ी जैसे विषय शामिल हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:

  • “घुमक्कड़ शास्त्र” – यह किताब घुमक्कड़ी को एक जीवन शैली के रूप में प्रस्तुत करती है और युवाओं को घूमने के लिए प्रेरित करती है।
  • “मेरी तिब्बत यात्रा” – इस पुस्तक में उनकी तिब्बत यात्रा का शानदार वर्णन है।
  • “वोल्गा से गंगा” – यह उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है, जिसमें मानव सभ्यता के विकास की कहानी दिखाई गई है।
  • “बौद्ध धर्म: संस्कृति और साहित्य” – इस किताब में बौद्ध धर्म के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।

इसके अलावा, उन्होंने पालि, संस्कृत, तिब्बती, रूसी, चीनी, फारसी, अरबी और अंग्रेज़ी जैसी अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का अनुवाद भी किया।

बौद्ध धर्म और मार्क्सवाद की ओर झुकाव

राहुल सांकृत्यायन का झुकाव बौद्ध धर्म और मार्क्सवाद की ओर था। उन्होंने सामाजिक समानता के पक्ष में कई लेख लिखे और समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता का विरोध किया। वे मानते थे कि धर्म को तर्क और विवेक के आधार पर अपनाना चाहिए, न कि अंधविश्वास के कारण।

राहुल सांकृत्यायन और समाज सुधार

उन्होंने न केवल साहित्य और दर्शन में योगदान दिया, बल्कि सामाजिक सुधारों में भी अग्रणी भूमिका निभाई। उन्होंने ब्राह्मणवाद, जातिवाद, अंधविश्वास और अन्य सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। वे महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे।

सम्मान और पुरस्कार

राहुल सांकृत्यायन को उनकी विद्वत्ता और योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें प्रमुख हैं:

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1958) – उनकी पुस्तक "मधुकर" के लिए मिला।
  • पद्मभूषण (1963) – भारत सरकार द्वारा उन्हें इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया।

निधन और विरासत

राहुल सांकृत्यायन का निधन 14 अप्रैल 1963 को हुआ, लेकिन उनके विचार और लेखन आज भी जीवंत हैं। वे घुमक्कड़ी, स्वतंत्र चिंतन और सामाजिक सुधार के प्रतीक बने हुए हैं।

निष्कर्ष

राहुल सांकृत्यायन का जीवन हमें सिखाता है कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती। वे एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने समाज की बेड़ियों को तोड़कर घुमक्कड़ी, ज्ञान और सामाजिक सुधार की राह चुनी। उनकी किताबें और विचार आज भी प्रेरणा देते हैं और हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि जीवन केवल जीने के लिए नहीं, बल्कि कुछ नया सीखने और समाज में बदलाव लाने के लिए होता है।

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